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Manmohan Singh

गंभीर बेरोजगारी के कारण एक पूरी पीढी हो सकती हैं बर्बाद – डॉ मनमोहन सिंह

नई दिल्ली| पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, वायरस की मार से अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए भारत के विश्वास का पुनर्निर्माण करना होगा.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मानना है कि कोरोना वायरस महामारी का असर भारत के साथ ग्लोबल इकोनॉमी पर पड़ा है. COVID-19 का आर्थिक प्रभाव काफी चर्चा में रहा है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था इतिहास में अपने सबसे खराब दौर से गुजरेगी. भारत कोई अपवाद नहीं है और इस प्रवृत्ति को कम नहीं कर सकता है. हालांकि अनुमान अलग-अलग हैं और यह स्पष्ट है कि कई दशकों में पहली बार भारत की अर्थव्यवस्था में संकुचन होगा.

पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना वायरस की मार से अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए भारत के विश्वास का पुनर्निर्माण और अर्थव्यवस्था को रिवाइव करना होगा.

द हिंदू में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, “ये हमारे देश और दुनिया के लिए असाधारण कठिन समय हैं. COVID-19 से लोग बीमारी और मौत के भय के चपेट में हैं. यह भय सर्वव्यापी है. कोरोना वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए देश की अक्षमता और बीमारी के लिए एक पुष्ट इलाज के अभाव ने लोगों की चिंताओं को बढ़ा दिया है. लोगों में इस तरह की चिंता की भावना समाज के कामकाज में जबरदस्त उथल-पुथल पैदा कर सकती है. नतीजतन सामान्य सामाजिक व्यवस्था में उथल-पुथल से आजीविका और बड़ी अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी.”

मनमोहन सिंह ने कहा, “आर्थिक संकुचन केवल अर्थशास्त्रियों के विश्लेषण और बहस के लिए जीडीपी नंबर नहीं है. इसका अर्थ है कई वर्षों की प्रगति का उलटा असर. हमारे समाज के कमजोर वर्गों की एक बड़ी संख्या गरीबी में लौट सकती है, यह एक विकासशील देश के लिए दुर्लभ घटना है. कई उद्योग बंद हो सकते हैं. गंभीर बेरोजगारी के कारण एक पूरी पीढ़ी खत्म हो सकती है. संकुचित अर्थव्यवस्था के चलते वित्तीय संसाधनों में कमी के कारण अपने बच्चों को खिलाने और पढ़ाने की हमारी क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है. आर्थिक संकुचन का घातक प्रभाव लंबा और गहरा है, खासकर गरीबों पर.”

मनमोहन ने आगे कहा, “इस प्रकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर वापस लाने के लिए पूरी ताकत के साथ काम करना अत्यावश्यक है. आर्थिक गतिविधियों में स्लोडाउन बाहरी कारकों जैसे लॉकडाउन और भय से प्रेरित लोगों और कंपनियों का व्यवहार है. हमारी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने का आधार पूरे इकोसिस्टम में विश्वास को वापस लाना है. लोगों को अपने जीवन और आजीविका के बारे में आश्वस्त महसूस करना चाहिए. उद्यमियों को निवेश को फिर से खोलने और बनाने के लिए आश्वस्त होना चाहिए. बैंकरों को पूंजी प्रदान करने के बारे में आश्वस्त महसूस करना चाहिए.”

उन्होंने कहा, “मल्टीलैटर ऑर्गेनाइजेशन को भारत को फंडिंग प्रदान करने के लिए पर्याप्त आत्मविश्वास महसूस करना चाहिए. सॉवरेन रेटिंग्स एजेंसियों को अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा करने और आर्थिक विकास को बहाल करने की भारत की क्षमता के बारे में आश्वस्त होना चाहिए.”