झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

एक प्रजाति दरबारी की

एक प्रजाति दरबारी की
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जहाँ अंधेरा कायम दिखता, दीप जलाना है साथी
जो विचार से सोये उनमें, होश जगाना है साथी
लोक चेतना से ही सत्ता, पर अंकुश मुमकिन होगा
आपस में भाईचारे को, नित्य बढ़ाना है साथी

सत्ता पाते ही शासकगण, बहुत मस्त हो जाते हैं
दलगत या अपनी सेवा में, खूब व्यस्त हो जाते हैं
जिस जनता ने सौंपी सत्ता, उसे उपेक्षित कर देते
उगते तो सूरज नित सीखो, रोज अस्त हो जाते हैं

एक प्रजाति दरबारी की, सब दिन से मौजूद यहाँ
नित दरबारी राग सुनाकर, कायम रखे वजूद यहाँ
सत्ता जब अस्ताचल को तब, जाते वो उदयाचल को
मौलिक धन उनका दरबारी, खाते जिसका सूद यहाँ

जो बुनियादी जहाँ जरूरत, हो पूरी वह चाह सदा
जागो ऐ! मजदूर किसानों, बने रहो हमराह सदा
सीढ़ी बना लिया हम सबको, सत्ता के सौदागर ने
वादे, नारे सुमन दशक से, जो करते गुमराह सदा

श्यामल सुमन