दो कौड़ी के
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ये जयकारे, दो कौड़ी के
शोर तुम्हारे, दो कौड़ी के
दिखलाते हो स्वप्न सुनहरे
खुले पिटारे, दो कौड़ी के
मजहब की नफरत में देखो
मरे बिचारे, दो कौड़ी के
लोग-बाग का भ्रम टूटा तो
तुझे पुकारे, दो कौड़ी के
खुद को घोषित करके खुद से
बने सितारे, दो कौड़ी के
मिला काम का वक्त तुझे पर
हुए नकारे, दो कौड़ी के
सुमन सुधारो खुद को या फिर
रह जा प्यारे, दो कौड़ी के
श्यामल सुमन
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