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चतरा विधायक के गांव के विकास का सच झारखण्ड वाणी के द्वारा खुलासा

झारखण्ड के मंत्री सत्यानंद भोक्ता चतरा से विधायक हैं और सदर ब्लॉक के मोकतमा पंचायत का कारी गांव उनका घर है. मंत्री जिस क्षेत्र से आते हैं वो गांव आज तक बदहाली के दौर से गुजर रहा है, कारी गांव के साथ-साथ कुंदा गांव के विकास की तस्वीर काफी धुंधली है. लगातार सड़क की मांग पूरी ना होने पर कुंदा गांव के लोगों ने जब श्रमदान से सड़क बना ली तो डीसी के निर्देश पर गांव को शहर से जोड़ने के लिए सड़क बनाने की कवायद शुरु की गई. लेकिन गांव की इस हालात के लिए ग्रामीणों ने सीधे तौर पर सवाल कर रहे हैं और मंत्री को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते नहीं चूक रहे हैं कि हमारे अपने मंत्री ही हमारी नहीं सुनते हैं.
चतराः जिस क्षेत्र का विधायक मंत्री हो उनके गांव की तस्वीर साफ-सुथरी और विकसित होनी चाहिए. झारखण्ड वाणी के सामने जो तस्वीर आयी वो वादों और दावों को आईना दिखाने के लिए काफी है. चतरा से विधायक और मंत्री सत्यानंद भोक्ता के गांव कारी और कुंदा गांव की हालत काफी दयनीय है. ग्रामीणों का दर्द इस संवाददाता के सामने ऐसा फूटा कि वो अपने जनप्रतिनिधि से सीधा सवाल करने लगे हैं कि आखिर क्यों अब तक उन्होंने गांव का विकास क्यों नहीं किया. काला पत्थर के लिए चतरा की अपनी अलग पहचान है. देश-विदेश में यहां का काला पत्थर एक्सपोर्ट होता है. लेकिन यहां के मूल निवासियों की हालत काफी दयनीय है. जनप्रतिनिधियों से लोगों को काफी उम्मीदें हैं. इसके लिए उन्होंने चतरा से अपने बीच से अपने चहेते सत्यानंद भोक्ता को विधायक बनाया. इस उम्मीद पर कारी और कुंदा गांव के लिए उन्हें सदन में बैठाया ताकि वो अपने गांव और घर के लोगों की तकलीफ को दूर करे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ सत्यानंद भोक्ता लगातर विधायक बनते रहे लेकिन गांव पिछड़ता रहा. ग्रामीणों का सवाल है कि जिस मिट्टी में वो पले-बढ़े उस मिट्टी के लिए उन्होंने
अब तक कुछ नहीं किया. ग्रामीणों ने कई बार प्रखंड कार्यालय और उपायुक्त कार्यालय के चक्कर लगाए, जिला परिषद अध्यक्ष, विधायक को भी आवेदन देकर सड़क बनाने की मांग की, जब सरकारी की मदद नहीं मिली तो कुंदा के आदिम जनजाति के 200 परिवार ने मिलकर सड़क बना ली. अधिकारियों को इस बात का पता चला तो डीसी के निर्देश पर फौरन कुंदा गांव को सीधे सड़क से जोड़ने की कवायद शुरु हुई. प्रखंड विकास पदाधिकारी श्रवण राम ने बताया कि इस सड़क पर विभाग की नजर है. विभागीय अनुशंसा के बाद जल्द ही सड़क निर्माण कराया जाएगा. गांव का आलम ये है कि ना सड़क है, ना अस्पताल, ना पीने का साफ पानी. इन बुनियादी सुविधाओं के लिए ग्रामीण सरकारी दफ्तर में सैकड़ों अर्जी दे चुके हैं. लेकिन मंत्री का जुड़ाव भी इस जमीन को विकास की राह तक नहीं ला पाया.
विकास के लाख दावे हो. क्षेत्र के विकास के लिए हजार वादे हो लेकिन तस्वीर जब सामने आई तो तमाम वादों और इरादों की पोल खुल गई और हजारों सवाल सामने आ गए. ये तो एक गांव की बात है लेकिन उन सुदूर अंचल और दूभर इलाकों का क्या होगा. वहां जनजीवन क्या और कैसा होगा. इसका बस अंदाजा लगाया जा सकता है.