छुपे हो तुम कहाँ सूरज
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छुपे हो तुम कहाँ सूरज, पता दो उस ठिकाने का
अँधेरा जो घना उससे, इरादा आजमाने का
हमें आता है लड़ना भी, हमहीं लड़ना सिखाते हैं
ये सदियों की लड़ाई है, सभी को हक दिलाने का
कलम को भी चलाते हम, मशालें भी जलाते हम
तुम्हें जो चाहिए, थामो, मगर है साथ आने का
लहू भी एक सा अपना, हवा, पानी भी इक जैसा
सभी इन्सान इक जैसे, यही रिश्ता निभाने का
भला सोचो सुमन हमको, जरूरत क्या है बँटने की
अगर कुछ सोच से अँधे, उसे रस्ता दिखाने का
श्यामल सुमन
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