भैंसे भी अब बीन बजाते
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व्यर्थ यहाँ क्यों बिगुल बजाते, यह मुर्दों की बस्ती है
गा कर कौवे राग सुनाते. यह मुर्दों की बस्ती है
यूँ भी शेर बचे हैं कितने, बचे हुए बीमार अभी
राज चलाते राजा गीदड़, यह मुर्दों की बस्ती है
निकल पड़ी है अब गिद्धों की, वे दरबार सजाते हैं
रोक टोक बिन धूम मचाते, यह मुर्दों की बस्ती है
साँप, नेवले की गलबाँही, देख सभी हैं अचरज में
भैंसे भी अब बीन बजाते, यह मुर्दों की बस्ती है
लूटे हैं दाने सब चूहे, समाचार पढ़कर रोते
बेजुबान पर दोष लगाते, यह मुर्दों की बस्ती है
बिखर गयीं हैं सारी चींटी, अलग अलग अब टोली में
बचे हुए को नित भरमाते, यह मुर्दों की बस्ती है
हैं सफेद अब सारे हाथी, बगुले काले सभी हुए
हर सोये को सुमन जगाते, यह मुर्दों की बस्ती है
श्यामल सुमन
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