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अमरीका के साथ भारत की नौसेना का अभ्यास क्या चीन के लिए संदेश?

भारतीय और अमरीकी नौसेना का हिन्द महासागर में संयुक्त सैन्य अभ्यास क्या चीन के लिए भी कोई संदेश हो सकता है? ख़ासतौर पर ऐसे माहौल में जब भारत और चीन के बीच लद्दाख की गलवान घाटी में तनाव का माहौल है.

ये अभ्यास अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास किया गया जहाँ भारतीय नौसेना की ‘ईस्टर्न फ़्लीट’ पहले से तैनात है.

भारतीय नौसेना के प्रवक्ता का कहना है कि ‘ये अभ्यास दरअसल ‘पैसेज एक्सरसाइज़’ का हिस्सा था जो समय-समय पर नौसेना दूसरे देशों की नौसेनाओं के साथ मिलकर करती रहती है.’

प्रवक्ता का कहना है कि ‘अमरीकी युद्धपोतों का बेड़ा ‘यूएसएस निमित्ज़’ हिन्द महासागर से होते हुए गुज़र रहा था और इसी दौरान दोनों देशों की नौसेनाओं ने मिलकर ये अभ्यास किया.’

उनका कहना है कि पहले भी भारतीय नौसेना जापान और फ़्रांस की नौसेनाओं के साथ मिलकर इस तरह के अभ्यास कर चुकी है.

सामरिक मामलों के जानकार कहते हैं कि हिन्द महासागर का ये इलाक़ा काफ़ी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये व्यापार का रास्ता भी है और कई शक्तिशाली देश जैसे कि अमरीका दक्षिण चीन सागर में इसी रास्ते से अपने युद्धपोत तैनात करने भेजते हैं. ऐसे में अंडमान और निकोबार द्वीप इनके लिए सामरिक रूप से बहुत मायने रखते हैं.

हिन्द महासागर का काफ़ी महत्व

अमरीकी नौसेना की सातवीं फ़्लीट द्वारा जारी किये गए बयान में रियर एडमिरल जिम किर्क के हवाले से कहा गया कि ‘हवाई सुरक्षा के अलावा ट्रेनिंग को भी सुधरने में इस अभ्यास से काफ़ी मदद मिली है.’

बयान में ये भी कहा गया कि अभ्यास से दोनों देशों की सेनाओं की क्षमता बढ़ेगी जिससे समंदर के रास्ते से आने वाले ख़तरे या फिर पायरेसी और आतंकवाद से मिलकर लड़ा जा सकता है.

भारतीय नौसेना का कहना है कि इस वर्ष के अंत में भी भारतीय नौसेना, ऑस्ट्रेलियाई, अमरीकी और जापानी नौसेना के साथ मिलकर पश्चिम बंगाल की खाड़ी में अभ्यास करेगी.

सामरिक मामलों के जानकार सुशान्त सरीन ने बीबीसी से बातचीत में कहा है कि ‘पहले अगर इस तरह का अभ्यास किया जाता तो भारत में ही इसके विरोध के स्वर गूंजने लगते. मगर चीन ने जो गलवान घाटी में किया है उसके बाद इस तरह के अभ्यास का लोगों ने स्वागत किया है.’

वे कहते हैं, “इसमें कोई शक़ नहीं कि भारत और अमरीका के बीच सामरिक मामलों को लेकर नजदीकियाँ बढ़ी हैं. भारत ने अमरीका के साथ कई सामरिक समझौते भी किये हैं जिसके तहत भारत अमरीका से पनडुब्बियों से सामना करने की तकनीक भी ले रहा है.”

हिन्द महासागर हर देश के लिए महत्वपूर्ण है. .खासतौर पर जिस तरह चीन दक्षिण चीन सागर पर अपना अधिकार जमाने की कोशिश कर रहा है, वहाँ जाने के लिए अमरीका और दुसरे शक्तिशाली देशों के युद्धपोतों के लिए हिन्द महासागर का काफ़ी महत्व है.

भारत क्या बताना चाहता है?

सरीन कहते हैं कि ‘चीन भी दक्षिण चीन सागर पर अपना दबाव बढ़ा रहा है. कुछ ही दिनों पहले भारतीय नौसेना ने चीन के युद्धपोतों को इंडोनेशिया के पास चुनौती दी थी जिसके बाद उसे वापस लौटने पर मजबूर होना पड़ा था.’

सामरिक मामलों के जानकारों का कहना है कि ‘फ़िलहाल भारत किसी भी गुट का हिस्सा नहीं है’ यानी भारत अपनी गुटनिरपेक्षता बनाये रखे हुए है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कहा कि ‘भारत किसी भी गठजोड़ का हिस्सा नहीं है.’

हालांकि चीन के साथ उत्पन्न हालात के बाद भारत ने दूसरे देशों के साथ सामरिक रिश्तों को पहले से भी ज़्यादा मज़बूत करने पर ध्यान देना शुरू कर दिया है. अमरीकी नौसेना के साथ इस अभ्यास को भी इसी रूप में देखा जा रहा है.

मगर रक्षा विशेषज्ञ राहुल बेदी को लगता है कि ‘ऐसा अभ्यास कर भारत चीन को बताना चाहता है कि वो अकेला नहीं है और अमरीका भी उसके साथ खड़ा है.’

राहुल बेदी कहते हैं कि ‘वर्ष 1991-92 से ही अमरीका और भारत साझा रूप से सैन्य अभ्यास करते आ रहे हैं.’

वैसे कारगिल युद्ध के दौरान भी अमरीका भारत के साथ खड़ा हुआ था.

लेकिन बेदी मानते हैं कि इस अभ्यास से ज़्यादा कुछ हासिल होने वाला नहीं है क्योंकि जो ‘भारत के लिए चिंता का मुख्य केंद्र है वो है नियंत्रण रेखा जहाँ चीन अपनी सैन्य ताक़त बढ़ाता जा रहा है.’

राहुल बेदी कहते हैं, “वैसे चीन की नौसेना भी काफ़ी सशक्त है और उसने युद्धपोतों को ध्वस्त करने वाली कई लम्बी दूरी की मिसाइलें भी विकसित की हैं.” लेकिन जो भी हो भारत ने हिन्द महासागर में अपनी नौसेना की मौजूदगी को और बढ़ा दिया है

अमरीकी नौसेना का निमित्ज़ युद्धपोत बेड़ा

ये अमरीका का सबसे बड़ा युद्धपोत बेड़ा है जिसमे टीकोंडेरोगा-क्लास गाइडेड मिसाइल जहाज़ – यूएसएस प्रिन्सटन और मिसाइलों को ध्वस्त करने वाले युद्धपोत यूएसएस स्टेरेट और यूएसएस राल्फ़ जॉनसन शामिल हैं.

इसे ‘सुपर कैरियर’ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये विश्व का सबसे बड़ा लड़ाई का जहाज़ है.

न्यूक्लियर शक्ति से लैस इस युद्धपोत को वर्ष 1975 में अमरीकी नौसेना में कमीशन किया गया.

इसका नाम अमरीकी नौसेना के तीसरे फ़्लीट एडमिरल कमांडर चेस्टर निमित्ज़ के नाम पर पड़ा जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.

शुरुआत में निमित्ज़ का पड़ाव नोरफ़ॉल्क में था मगर अब इसका पड़ाव आधिकारिक तौर पर किटसैप के नौसेना बेस पर है.

लेकिन अप्रैल माह में कोरोनावायरस की चपेट में इस युद्धपोत में सवार लोग भी आ गए थे जिसकी वजह से इसे 27 दिनों तक क्वारंटीन में रखा गया. फिर इस महीने की शुरुआत में फिर से निमित्ज़ को साउथ चाइना सी में तैनात किया गया.

इस युद्धपोत को 2022 में हटा लिया जाएगा जब इससे भी आधुनिक ‘गेराल्ड आर फोर्ड क्लास’ युद्धपोत यूएसएस जॉन एफ केनेडी इसकी जगह ले लेगा. लेकिन अभी तक इसपर फैसला नहीं हुआ है.