झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

अब आदमी मिलता कहाँ?

अब आदमी मिलता कहाँ?
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मेरे मालिक तू बता दे क्यों बना ऐसा जहां
सच को लाओ सामने तो दुश्मनी होती यहाँ

ख्वाब बचपन में जो देखा वो अधूरा रह गया
अनवरत जीने की खातिर दे रहा हूँ इम्तहाँ

मुतमइन कैसे रहूँ जब घर पड़ोसी का जले
है फ़रिश्ता दूर में अब आदमी मिलता कहाँ

हर कोई बेताब अपनी बात कहने के लिए।
सोच की धरती अलग पर सब दिखाता आसमां

ग़म नहीं इस बात का कि लोग भटके राह में
हो अगर एहसास ज़िन्दा छोड़ जायेगा निशां

मुश्किलों से भागने की अपनी फ़ितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां

मिलती है खुशबू सुमन को रोज अब खैरात में
जो फकीरी में लुटाते झब यहाँ फिर कल वहाँ

श्यामल सुमन