झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

आत्महत्या

देखो राज, जब आदमी बूढ़ा हो जाता है, तो वह बच्चों के समान बन जाता है ।बात बात पर जिद करना ,बच्चों के समान ही समय बेसमय खाने की जिद करना, कुछ खरीदने या घूमने की इच्छा जाहिर करना ,क्योंकि बुढ़ापा में आदमी की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण हो जाती है और जिस व्यक्ति की गांठ में अब कुछ ना बचा हो, तो इस कलयुग में बहुत कम ही ऐसा बेटा है, जो  पिता की सही ढंग से देखभाल करें और यही ऐसी बात है ,जो वह दूसरे व्यक्ति से कहने में झिझकता है ।

राज, क्या तुम सोच सकते हो, जिसका 6 बेटा हो और सभी कमाने खाने वाले हो। उसका बाप दाने-दाने के लिए तरसे। एक समय कोई बेटा नाश्ता कराएं, तो दूसरे समय दूसरा बेटा आधा पेट भोजन कराएं। हरदम एक-दूसरे का मुंह जोहना पड़े ।कभी कोई बेटा या बहू खाने के साथ चंद कड़वी बातें भी खाने में चटनी के समान परोस दें, तो वह खाना क्या निकला जाएगा ?
जानते हो राज, एक दिन मनोज के पिता ने मुझसे कहा कि देबू बेटा, जानते हो मेरी उम्र के लोग ठीक से चल फिर भी नहीं पाते ,लेकिन मैं अभी भी वक्त पड़ने पर 10 -15 किलोमीटर चल सकता हूं ।मेरी तबीयत भी बिल्कुल ठीक रहती है। परंतु मुझे भूख बहुत लगती है ।अब शायद मेरी खुराक ज्यादा बढ़ गई है, इसलिए तो जल्दी जल्दी भूख लगती है और राज ,इसी भूख ने उन्हें घर से निकलने को मजबूर कर दिया ।घर में एक पत्र छोड़ गए हैं कि मैं आत्महत्या करने जा रहा हूं ।यह बात सुनकर मेरा मन भी उदास हो गया। मैं देबू से पूछा- उनके परिवार वाले तो बहुत दुखी होंगे ?देबू जरा चढ़े स्वर में उत्तर दिया -अरे उनके परिवार वाले भी खूब है. कोई पिताजी की खोज खबर लेने के लिए नहीं जा रहा है। एक बेटा कहता है कि पिताजी कुछ नहीं करेंगे, दो-चार दिन में अपने आप वापस आ जाएंगे। एक बेटा कहता है कि पिताजी मरेंगे तो खूब धूमधाम से श्राद्ध का भोज करेंगे ।एक बहू कहती है की जीते जी पिताजी को एक गिलास पानी के लिए नहीं पूछा, मरने पर श्राद्ध के भोज का रौब दिखा रहा है। दूसरी बहू कहती है कि खाने के लिए तो कभी पिताजी को पूछा नहीं, मरने पर अगरबत्ती दिखाओगे ?फूल माला चढ़ओगे ?यही सब उनके परिवार में हो रहा है ।
अरे देबू, मनोज के पिताजी का कुछ पता चला? लगभग एक सप्ताह बाद देबू से मेरी भेंट होने पर मैंने यह बात उससे पूछी ।देबू नि:श्वास छोड़ता हुआ बोला- हां मनोज के पिताजी वापस घर तीन-चार दिन बाद ही आ गए। मैंने भी एक लंबा नि:श्वास छोड़ते हुए देबू से कहा- चलो अच्छा ही हुआ ,उन्होंने आत्महत्या नहीं की ,तो और भी लफड़ा हो जाता। देबू एक बार मेरे चेहरे को पढ़ना चाहा, फिर आकाश की ओर देखने लगा। कुछ देर बाद अपनी खोई खोई नजरों से मुझे देखते हुए धीमे-धीमे कहने लगा -राज, मनोज के पिता ने आत्महत्या नहीं की, अपनी आत्मा की हत्या की है। अब वह बहुत टूटे टूटे से दिखते हैं। केवल इसी तरह अपना दिन पूरा कर रहे हैं। उनकी यह अभिलाषा मन में दबी  ढकी रह गई कि छे बेटों में से कोई एक भी बेटा मना कर घर ले आता और कहता कि- पिताजी आपके बिना घर कैसा सुना सुना लग रहा है, तो उनकी आत्मा की हत्या नहीं होती। देबू की बातें मुझे अब सुनाई नहीं पड़ रही थी। उसने आत्महत्या नहीं की, अपनी आत्मा की हत्या की है ।