जब जब देश के सामने कोई संकट आया है तब-तब ऐसे वीर सपूत भी सामने आए हैं जिन्होंने संकट से देश को उवारा है। सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत माता के वीर सपूतों में से एक थे, जिनमें देशसेवा, समाज सेवा की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। सरदार पटेल एक सच्चे देशभक्त ही नहीं अपितु वे भारतीय संस्कृति के महान समर्थक थे।
सरदार पटेल को उनकी दृढ़ता, आत्मबल, संकल्प शक्ति, निष्ठा, अटल निर्णय शक्ति , दृढ़ विश्वास, साहस एवं कार्य के प्रति लगन के कारण ही उन्हें “लौह पुरुष” की उपाधि मिली। ‘सादा जीवन उच्च विचार’, स्वाभिमान, देश के प्रति अनुराग यही उनके आदर्श थे। वह आधुनिक भारत के शिल्पी थे। उनमें एकता के प्रति अटूट निष्ठा और प्रेम था। जिस असीम शक्ति और उत्साह से उन्होंने नवजात गणराज्य की प्रारंभिक मुश्किलों का समाधान किया, उसकी वजह से उन्हें विश्व के इतिहास में ऊंचा स्थान हासिल है।
सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में एक लेवा पटेल जाति में हुआ था। उनके पिता झाबेरभाई भी एक महान देशभक्त थे। देशभक्ति का पाठ भी उन्होंने इन्हीं से पढ़ा था उनकी मां का नाम लड़बाई था। सन् 1913 में उन्होंने वकालत पास कर ली और अहमदाबाद में वकालत का काम शुरू कर दिया। सरदार पटेल की शिक्षा का प्रमुख स्रोत स्वाध्याय था। सन् 1918 में सरदार पटेल महात्मा गांधी के संपर्क में आए। गुजरात के किसानों का नेतृत्व सरदार पटेल के द्वारा ही किया गया था। इसके अलावा ‘बारदोली सत्याग्रह’ का नेतृत्व पटेल द्वारा 1927 मे किया गया।
पटेल ने भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में जितना योगदान दिया उससे अधिक योगदान उन्होंने स्वतंत्र भारत को एकजुट करने में दिया। देशी रियासतों को भारत में मिलाने का साहसिक कार्य सरदार पटेल के प्रयासों से ही संभव हो सका। जब 15 अगस्त 1947 को भारत परतंत्रता की बेड़ियों से आजाद हुआ तो उस समय लगभग 562 देशी रियासतें थी, जिन पर ब्रिटिश सरकार का हुकूमत नहीं था। उनमें से जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर को छोड़कर अधिकतर रियासतों ने स्वेच्छा से भारत में अपने विलय की स्वीकृति दे दी। जूनागढ़ का नवाब जूनागढ़ का विलय पाकिस्तान में चाहता था । नवाब के इस निर्णय के कारण जूनागढ़ में जन विद्रोह हो गया जिसके परिणाम स्वरूप नवाब को पाकिस्तान भाग जाना पड़ा और जूनागढ़ पर भारत का अधिकार हो गया। हैदराबाद का निजाम हैदराबाद स्टेट को एक स्वतंत्र देश का रूप देना चाहता था। इसलिए उसने भारत मेंश हैदराबाद के विलय की स्वीकृति नहीं दी, यद्यपि भारत को 15 अगस्त 1947 के दिन स्वतंत्रता मिल चुकी थी किंतु 18 सितंबर 1948 तक हैदराबाद भारत से अलग ही रहा।
इस पर तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने हैदराबाद के नवाब की हेकड़ी दूर करने के लिए 13 सितंबर 1948 को सैन्य कार्यवाही आरंभ की जिनका नाम “ऑपरेशन पोलो” रखा गया भारत की सेना के सामने निजाम की सेना टिक नहीं सकी और उन्होंने 18 सितंबर 1948 को समर्पण कर दिया। हैदराबाद के निजाम को विवश होकर भारतीय संघ में शामिल होना पड़ा।
निःसंदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था क्योंकि भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। सन 1930 के नमक सत्याग्रह को सफल बनाने में पटेल जी का बड़ा योगदान था। नेहरू के गिरफ्तार होने के बाद पटेल ने कांग्रेस में अध्यक्ष का कार्यभार संभाला उन्हें जेल भी जाना पड़ा। जेल से बाहर आते ही किसानों की करबंदी को लागू करने हेतु प्रयत्न किया। इस पर 80,000 किसानों ने गिरफ्तारियां दी।
सरदार पटेल ने अपने पूरे जीवन में प्रमुखता के विभिन्न पदों पर कार्य किया। उनके कामकाजी तरीके की सराहना की गई और उन्हें 1924 में अहमदाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया। वर्ष 1931 में कराची सत्र के लिए उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। वह आजादी के बाद भारत के पहले उप प्रधानमंत्री बने। उन्होंने 15 अगस्त 1947 से 15 दिसंबर 1950 तक गृह मंत्रालय के पद को संभाला।
सरदार पटेल को नवीन भारत का निर्माता माना जाता था। सरदार पटेल राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी थे। देखने में बेहद शांत और स्वभाव के नरम सरदार पटेल समय के साथ अपने स्वभाव में बदलाव के लिए जाने जाते थे। उनके द्वारा किए गए साहसिक कार्यों की वजह से उन्हें लौह पुरुष और सरदार जैसे विशेषणों से नवाजा गया।
सरदार पटेल मन, वचन तथा कर्म से एक सच्चे देशभक्त थे। वह वर्णभेद तथा वर्गभेद के कट्टर विरोधी थे। वह अंतः करण से निर्मित थे। अपूर्व संगठन शक्ति एवं शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता रखने वाले सरदार पटेल आज भी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। कर्म और संघर्ष के जीवन को वह जीवन का ही एक रूप समझते हैं। भारत के देशभक्तों में एक अमूल्य रत्न सरदार पटेल को भारत सरकार ने सन 1991 में “भारत रत्न” से सम्मानित किया। आज सरदार पटेल हमारे बीच नहीं हैं, परंतु उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा। उन्हें हम सभी शत-शत नमन करते हैं।
उन्होंने कहा था आपकी अच्छाइयां आपके मार्ग में बाधक हैं, इसलिए अपनी आंखों को क्रोध से लाल होने दीजिए और अन्याय का सामना मजबूत हाथों से कीजिए
लेखक डॉ संजीत कुमार
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